पीएचडी ऑफिस में नयी लडकी का आगमन
कल तक जो ऑफिस था सूना सूना
आज न जाने, कहाँ से एक लडकी है इसमे आई.
कल तक था जो मरघट का एक कमरा
आज न जाने, कहाँ से एक अप्सरा हैं आई.
कल तक जो थे पक्के दोस्त निराले
आज न जाने, कहाँ से उसमे एक दीवार है आई.
कल तक जो था एक अनमना - निफिक्र माहौल
आज न जाने, उसमे कहाँ से नयी उर्जा है आई.
कल तक जो यदा कदा दिखते थे ऑफिस में
आज न जाने क्यों, शाम ढले भी जाने का है कोई नाम नहीं.
कल तक जो 'हेल्प' के नाम से थे कतरातें
आज न जाने क्यों, लगे हैं सबसे हेल्पफुल कहलवाने.
न जाने ये कैसी होढ़ हैं,
जिसमे सब भागे जातें हैं
और बस एक नज़र के लिए
मुक्का मुक्की पर उतर जातें हैं.
ऑफिस में बैठी वो लड़की अपने ऊपर इत्तराती हैं
और बस एक मुस्कान से अपना काम निकलवाती हैं.
मैं भी बैठा सोच रहा भगवान ने क्या चीज़ बनायीं
एक ने ही ऑफिस की ऐसी दशा बनायीं?
Saturday, 14 April 2012
देश की धरती
देश की धरती
तन समर्पित, मन समर्पित, और यह जीवन समर्पित
सोचता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ !
तुने ही हँसना सिखाया, और रोना भी तुम्ही ने
जब कभी खाई है ठोकर, तुने ही उठना सिखाया.
तुझसे ही लिपट के काटे हैं लम्हे, बचपन से जवानी तक
और जब कभी मायुस होया, तेरी ही गोद में सोया.
याद जब आती तुम्हारी, व्याकुल है होता मन ये मेरा
बिन तेरे मैं अधुरा, मैं अधुरा...
अब खुद ही को खुद में, तलाशता फिर रहा
न जाने किस मोड़ पे खुद ही को खुद से छोड़ आया.
बस यही मिन्नतें मैं हर बार करता हूँ
जल्द हो दीदार तेरा, बस यही आगाज़ करता हूँ.
तन समर्पित, मन समर्पित, और यह जीवन समर्पित
सोचता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ !!!
तन समर्पित, मन समर्पित, और यह जीवन समर्पित
सोचता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ !
तुने ही हँसना सिखाया, और रोना भी तुम्ही ने
जब कभी खाई है ठोकर, तुने ही उठना सिखाया.
तुझसे ही लिपट के काटे हैं लम्हे, बचपन से जवानी तक
और जब कभी मायुस होया, तेरी ही गोद में सोया.
याद जब आती तुम्हारी, व्याकुल है होता मन ये मेरा
बिन तेरे मैं अधुरा, मैं अधुरा...
अब खुद ही को खुद में, तलाशता फिर रहा
न जाने किस मोड़ पे खुद ही को खुद से छोड़ आया.
बस यही मिन्नतें मैं हर बार करता हूँ
जल्द हो दीदार तेरा, बस यही आगाज़ करता हूँ.
तन समर्पित, मन समर्पित, और यह जीवन समर्पित
सोचता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ !!!
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