पीएचडी ऑफिस में नयी लडकी का आगमन
कल तक जो ऑफिस था सूना सूना
आज न जाने, कहाँ से एक लडकी है इसमे आई.
कल तक था जो मरघट का एक कमरा
आज न जाने, कहाँ से एक अप्सरा हैं आई.
कल तक जो थे पक्के दोस्त निराले
आज न जाने, कहाँ से उसमे एक दीवार है आई.
कल तक जो था एक अनमना - निफिक्र माहौल
आज न जाने, उसमे कहाँ से नयी उर्जा है आई.
कल तक जो यदा कदा दिखते थे ऑफिस में
आज न जाने क्यों, शाम ढले भी जाने का है कोई नाम नहीं.
कल तक जो 'हेल्प' के नाम से थे कतरातें
आज न जाने क्यों, लगे हैं सबसे हेल्पफुल कहलवाने.
न जाने ये कैसी होढ़ हैं,
जिसमे सब भागे जातें हैं
और बस एक नज़र के लिए
मुक्का मुक्की पर उतर जातें हैं.
ऑफिस में बैठी वो लड़की अपने ऊपर इत्तराती हैं
और बस एक मुस्कान से अपना काम निकलवाती हैं.
मैं भी बैठा सोच रहा भगवान ने क्या चीज़ बनायीं
एक ने ही ऑफिस की ऐसी दशा बनायीं?
Saturday, 14 April 2012
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment