देश की धरती
तन समर्पित, मन समर्पित, और यह जीवन समर्पित
सोचता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ !
तुने ही हँसना सिखाया, और रोना भी तुम्ही ने
जब कभी खाई है ठोकर, तुने ही उठना सिखाया.
तुझसे ही लिपट के काटे हैं लम्हे, बचपन से जवानी तक
और जब कभी मायुस होया, तेरी ही गोद में सोया.
याद जब आती तुम्हारी, व्याकुल है होता मन ये मेरा
बिन तेरे मैं अधुरा, मैं अधुरा...
अब खुद ही को खुद में, तलाशता फिर रहा
न जाने किस मोड़ पे खुद ही को खुद से छोड़ आया.
बस यही मिन्नतें मैं हर बार करता हूँ
जल्द हो दीदार तेरा, बस यही आगाज़ करता हूँ.
तन समर्पित, मन समर्पित, और यह जीवन समर्पित
सोचता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ !!!
Saturday, 14 April 2012
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